Different-parts-of-plants-leaves

 Different Parts of Plants – leaves
पौधों के विभिन्न भाग – पत्तियाँ 

  • पत्तियाँ पौधे के वायवीय भागों जैसे – तने की शाखाओं, कक्षीय कलिकाओं आदि से विकसित होती है |
  • ये पत्तियाँ सामान्यतया हरे रंग (क्लोरोफिल वर्णक की उपस्थिति से) होती है तथा पत्तियों में प्रकाश संश्लेषण की क्रिया से भोज्य पदार्थों का निर्माण किया जाता है |
  • तने पर पत्तियाँ असमान रूप से वितरित रहती है |
  • एक पत्ती में तीन मुख्य संरचनाएँ दिखाई देती है :- 

        (i) पर्णाधार / हाइपोपोडियम
        (ii) पर्णवृंत  / मीजोपोडियम 
        (iii) पर्णफलक / एपिपोडियम
पत्ती


  • पत्ती के कक्ष के दोनों ओर अनुपर्ण (Stipule) पाए जाते है, जो कि तरुण पत्तियों की सुरक्षा करते है |
  • अनुपर्ण के पास पत्ती का प्रारम्भिक सिरा, जो तने से जुड़ा रहता है, कुछ फूला हुआ होता है | ये भाग हाइपोपोडियम या पर्णाधार कहलाता है |
  • पर्णाधार से जुड़ी संरचना मीजोपोडियम / पर्णवृंत / petiole कहलाती है ये पर्णवृंत लम्बी, बेलनाकार संरचना जो पर्णफलक से जुडती है |
  • पर्णफलक / एपिपोडियम पर्ण का चपटा चौड़ा भाग है | 
  • पर्ण / पत्तियों के प्रमुख कार्य – प्रकाश संश्लेषण, श्वसन में सहायक (रंध्र उपस्थित) |
  • अन्य कार्य – भोजन संग्रहण, कीटों का शिकार, गति, सुरक्षा आदि | 




पत्तियों के रूपांतरण 


1. पर्ण कंटक / Leaf spine :- इन पौधों में जल की हानि कम करने हेतु पत्तियाँ काँटों में रूपांतरित हो जाती है जैसे :- नीबू और मरुद्भिद पादप (Xerophytes जैसे नागफनी) 



2. शल्की पर्ण / Scaly leaves :- ये पतली शल्क के समान भूरे रंग की भूमिगत तने पर पाई जाती है तथा ये शल्की पर्ण कलिकाओं को सुरक्षा प्रदान करती है उदा. – अदरक, हल्दी, अरबी |



3. पर्ण मूल / Leaf Root :- जलीय पौधे जैसे ‘साल्वीनिया’ में पर्ण ही रूपांतरित होकर जड़ों के समान दिखाई देती है | 



4. पर्ण प्रतान / Leaf Tendril :- पर्ण रूपांतरित होकर प्रतान का निर्माण करते है, जो  कि पौधे को सहारा / आलम्बन प्रदान करते है जैसे :- मटर में |



5. संग्राहक पर्ण / Storage leaves :- माँसल मरुद्भिद / succulent plant जैसे एलोय आदि में पर्ण भोजन संग्रहण कर  मोटी, गद्देदार हो जाती है इन पत्तियों के रन्ध्र धंसे हुए होते है |
Succulent plant



6. घट पर्ण / Pitcher plant :- ‘निपेंथिज’ जैसे कीटभक्षी, जो नाइट्रोजन की कमी वाली मृदा में उगते है | N की कमी को पूरा करने के लिए भक्षण करते है | इनमें हाइड्रोलाइटिक एंजाइम कीट का पाचन कर देते है | 


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