कवक / Fungi
इन्हें व्हीटेकर के पंच जगत वर्गीकरण में कवक जगत में बहुकोशिकीय, यूकैरियोटिक एवं विषमपोषी के साथ रखा गया है |
ये परिस्थितिकी तंत्र में अपघटक का कार्य करते है |
कवक का शरीर जाल के रूप में फैला रहता है इस जाल में अनेक कवक तन्तु हाईफी पाए जाते है |
ये हाईफी बहुकोशिकीय संरचनाये होती है |
कवकों विषमपोषी होते है :-
मृतोपजीवी (Saprophytes) :- ये मृत कार्बनिक पदार्थो से अपना भोजन प्राप्त करते है | जैसे – राइजोपस, म्यूकर, एगैरिकस, एस्पर्जिलस आदि |
सहजीवी (Symbiotic) :- ये किसी जीव के साथ सहजीवी सम्बन्ध दर्शाते है | जैसे – लाइकेन, मायकोराइजा |
लाइकेन :- इसमें शैवाल और कवक सहजीवी के रूप में रहते है इनमे शैवाल प्रकाश संश्लेषण की क्रिया द्वारा भोजन बनता है और कवक सुरक्षा एवं आवास प्रदान करता है | इनके इस सम्बन्ध को पति – पत्नी सम्बन्ध भी कहते है |
लाइकेन नग्न चट्टानों पर प्राथमिक अनुक्रमण (जैविक समुदाय की शुरुवात) करता है |
यह सल्फर युक्त प्रदूषित वायु में वृद्धि नहीं करता है |
मायकोराइजा :- उच्च पादप एवं कवक के मध्य सहजीवी सम्बन्ध होता है |
परजीवी (Parasitic) :- ये सामान्यतया रोगकारक कवक होते है जो दूसरे जीवी के शरीर से भोजन प्राप्त करते है | जैसे :- एपिडार्मोफायटॉन, केंडिडा एल्बीकेंस |
कवकों में कोशिका भित्ति पायी जाती है जिसका मुख्य घटक काईटिन (C22H54N4O21) होता है | काईटिन एक जटिल हाइड्रोकार्बन है |
नोट :- यीस्ट एक मात्र एक कोशिकीय कवक है |
कवकों के महत्त्व
कवकों के लाभदायक उपयोग :-
एंटीबायोटिक के स्त्रोत :- एलेक्जेंडर फ्लेमिंग ने सर्वप्रथम पेनिसिलियम नोटेटम नामक कवक से पेनिसिलिन एंटीबायोटिक प्राप्त की |
ग्रिसियोफल्विन, सीफैलोस्पोरीन, क्लोरोमासिटिन, फ्रीक्वेन्टीन जवाहैरिन आदि कवक से प्राप्त होने वाली एंटीबायोटिक है |
भोज्य पदार्थो के रूप में :-
यीस्ट (सैकेरोमाइसिस सेरेविसी) एक कवक है जिससे यीस्ट केक, टैम्फ (सोयाबीन + कवक), इन्कैपेरिना जैसे पौष्टिक पदार्थो का निर्माण किया जाता है |
मशरूम / मरुखुम्बी / एगैरिकस भी खाद्य कवक है जो कि प्रोटीन का अच्चा स्त्रोत है |
यीस्ट से विटामिन B कॉम्पलेक्स प्राप्त होता है |
बेकरी उद्योग में :-
यीस्ट / सैकेरोमाइसिज सेरेविसी का प्रयोग बेकरी उत्पादों जैसे केक, पेस्ट्री, ब्रेड निर्माण में खमीर उठाने (किण्वन) की क्रिया में किया जाता है |
कार्बनिक अम्लों की प्राप्ति में : –
ऑक्सेलिक अम्ल – पेनिसिलियम ऑक्सैलिकम से
सिट्रिक अम्ल – पे. ल्यूटियम से (तथा ऐस्पर्जिलस नाइजर द्वारा – इसका उपयोग सॉफ्ट ड्रिंक उद्योग में भी करते है)
ग्लूकोनिक अम्ल – पे. ग्लॉकम से (तथा ऐस्पर्जिलस नाइजर द्वारा)
इटाकोनिक अम्ल – ऐस्पर्जिलस इटाकोनिकम से (प्लास्टिक उद्योग में भी)
गैलिक अम्ल – ऐ. गैलोमाइसीज से (अम्ल स्याही बनाने में)
कोजिक अम्ल – ऐ. ओराइजी से (यह कीटनाशक, ईथर, रंग आदि बनाने में भी काम आता है)
नोट :- ऐस्पर्जिलस ओराइजी से प्राप्त डाइस्टेस नामक एंजाइम जापान में चावल के मांड से सेक नामक मदिरा बनाने के काम में लिया जाता है |
पादप हार्मोन की प्राप्ति :- वृद्धिकारक पादप हार्मोन जिबरेलिन, जिबरैला फ्यूरेजिकोराइ नामक कवक से प्राप्त किया जाता है इस हार्मोन का उपयोग पुष्पन, वृद्धि, बीज अंकुरण को प्रेरित करने हेतु या बीज रहित फलों के उत्पादन में होता है |
कवकों के हानिकारक प्रभाव :-
पौधों में विभिन्न प्रकार के रोग उत्पन्न करते है :-
जैसे :- गेंहू, मटर एवं अंगूर का पाउडरी मिलड्यु रोग
गेंहू का ब्राउन, येलो रस्ट रोग
जौ, ज्वार का रस्ट रोग
गेंहू का ढीला स्मट रोग
क्रूसीफेरी / ब्रेसिकेसी का व्हाइट रस्ट रोग
राई का इर्गोटिज्म रोग
मनुष्यों में विभिन्न प्रकार के रोग जैसे :-
दाद – ट्राइकोडर्मोफायटॉन द्वारा
एथलीट फुट – एपिडर्मोफायटॉन द्वारा
मोनिलियासिस – केंडिडाएल्बीकेन्स द्वारा
एस्पर्जिलोसिस – एस्पर्जिलस द्वारा
टोरूलोसिस – क्रिप्टोकोकस नियोफ़ोमैन्स द्वारा
विषाक्तता / Toxicity :-
राई में इरगॉट रोग उत्पन्न करने वाला “क्लेविसेप्स परप्युरिया” विषाक्त एल्केलॉयड उत्पन्न करता है |
राइजोपस, म्यूकर एवं एस्पर्जिलस खाद्य सामग्री को नष्ट कर देती है |
राइजोपस एवं म्यूकर जहाँ नमी युक्त भोज्य पदार्थों जैसे नम ब्रेड, रोटी, अचार आदि पर वृद्धि करते है, जबकि एस्पर्जिलस “प्रयोगशाला की खरपतवार” भी कहलाती है क्योंकि यह संवर्धन माध्यम को ही संक्रमित क्र देता है |
नोट :- कुछ मशरूम भी जहरीले होते है |
काष्ठ को नष्ट करना :- पोलीपोरस, गनोडर्मा नामक कवक वृक्षों की काष्ठ को संक्रमित कर इसे नष्ट कर देते है |
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