Microbiology

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unit – 01

 

सूक्ष्म जीव  :- जीवाणु, वायरस , कवक  (लाभकारी  एवं  हानिकारक)

 

 

 

 

सूक्ष्म जीव :- वे जीव जो हमे नग्न आँखों  से दिखाई नहीं देते है सूक्ष्म जीव कहलाते है | ये एक  कोशिकीय या बहुकोशिकीय हो सकते है | जैसे :- जीवाणु, वायरस, कवक , शैवाल, अवपंक कवक, माइकोप्लाज्मा एवं प्रोटोजोआ आदि सूक्ष्म जीव के अंतर्गत आते है |

 

 

सूक्ष्मजीवविज्ञान / सूक्ष्मजैविकी (Microbiology) :- विज्ञान की वह शाखा जिसमे सूक्ष्मजीवों का अध्ययन किया जाता है | इसके जनक रॉबर्ट कॉच है जिन्होंने रोगाणु सिद्धांत का प्रतिपादन किया था |

 

 

 

जीवाणु विज्ञान के  जनक  जनक एंटोनी  वॉन ल्युवेनहॉक है | जिन्होंने सबसे पहले जीवाणु की खोज की थी |

 

 

सूक्ष्म जीव दो प्रकार  के होते है –

(i)                           प्रोकैरियोट :-  इन सूक्ष्म जीवों की कोशिका प्रोकैरियोटिक होती है जिसमे केन्द्रक अनुपस्थित होता है | जिसमें जीवाणु, माइकोप्लाज्मा  और नील हरित शैवाल को शामिल किया गया है |

 

 

(ii)                        यूकैरियोट :- इन सूक्ष्म जीवों की  कोशिका यूकैरियोटिक होती है जिसमे केन्द्रक पाया जाता है | इसमें शैवाल, कवक, अवपंक कवक और प्रोटोजोआ को शामिल किया गया है |

 

जीवाणु

खोज :- सन् 1674 ई. में एंटोनी वॉन ल्युवेनहॉक ने तालाब के दूषित जल में की थी |

जीवाणु पृथ्वी पर खोजा गया प्रथम सजीव कोशिका या जीव था |

 

सामान्य लक्षण :-

    1)   जीवाणु   सर्वव्यापी अर्थात् भू, जल तथा वायु सभी स्थानों पर पाये जाते है |

 

 

 

    2)   ये अत्यंत सरल संरचना युक्त एक कोशिकीय प्रोकैरियोटिक सूक्ष्म जीव है |जीवाणु को व्हीटेकर के पंच जगत सिद्धांत में मोनेरा जगत में रखा गया है |

 

 

    3)   जीवाणुओं में पोषण –

स्वपोषी – रसायन एवं प्रकाश संश्लेषी

विषमपोषी – परजीवी, मृतोपजीवी, सहजीवी प्रकार का होता है |

 

 

 

    4)   इनमें दृढ़ कोशिका भित्ति पाई जाती है जो पेप्टीडोग्लाइकेन के अलावा 

            – NAG :- N – एसिटाइल ग्लूकोज एमीन

      NAM :- N – एसिटाइलम्यूरैमिक अम्ल भी पाया जाता है |

 

नोट :- इनमें कोशिका झिल्ली लिपोप्रोटीन से बनी होती है जिसमें कई वलन पाये जाते है जिनमें श्वसन से सम्बन्धित एंजाइम पाए जाते है जिन्हें मीजोसोम / बैक्टीरियल माइटोकॉन्ड्रिया कहते है | 

 

कुछ जीवाणुओं में कोशिका भित्ति के बाहर पॉलिसैकेराइड से बना कैप्सूल पाया जाता है यह कैप्सूल रोग जनक जीवाणुओं में ही पाया जाता है |

 

 

 

    5)   अन्य प्रोकैरियोट जैसे नील हरित शैवाल के समान इनमें केन्द्रक नही होता है और केन्द्रक कला तथा केंद्रिका का भी आभाव होता है |

 

    6)   डी.एन.ए. तथा आर. एन. ए. दोनों ही प्रकार के न्यूक्लिक अम्ल उपस्थित होते है |

 

 

    7)   इनमे डी.एन.ए. वृत्ताकार पाया जाता है | मुख्य डी. एन. ए. के अतिरिक्त डी. एन. ए. को प्लाज्मिड कहते है जिसका उपयोग जीनअभियांत्रिकी में वाहक के रूप में किया जाता है |

 

 

 

 

    8)   इनमें माइटोकोंड्रिया, गॉल्जीकाय, अंत:प्रद्रव्यी जालिका का अभाव होता है |

 

 

 

    9) कोशिका में श्वसन का कार्य अन्तर्वलित कोशिकाद्रव्यी कला में स्थित मीजोसोम द्वारा किया जाता है |

 

 

 

1        10) इनमें अलैंगिक जनन विखंडन विधि से होता है | तथा लैंगिक जनन का अभाव होता है |

 

 

1    11)  जीवाणु में पायी जाने वाली वॉल्यूटिन कणिकाएं फ़ॉस्फेट का संग्रहण करती है |

 

 

1    12)  पॉलि बीटा हाइड्रोक्सी ब्यूटाईरिक अम्ल कणिकाएं वसा का संग्रहण करती है |

 

 

 

 

 

 

 

 

 

जीवाणुओं की लाभदायक गतिविधियां

 

मृदा के उपजाऊपन में (In Soil Fertility) :-

नाईट्रीकारण :-

नाइट्रोबैक्टर, नाइट्रोसोमोनास तथा नाइट्रोकोकस जैसे नाइट्रीकारक जीवाणु मृदा में नाइट्रोजनी अपशिष्ट पदार्थो को नाइट्रेट में रूपांतरित कर मृदा का उपजाऊपन बढ़ाते है |

 

 

नाइट्रोजन का स्थिरीकरण :-

वायुमण्डलीय नाइट्रोजन का मृदा में स्थिरीकरण भी बैक्टीरिया करते है | ये नाइट्रोजन स्थिरीकरण की क्रिया दो प्रकार से होती है :-

 

स्वतंत्र जीवी जीवाणु द्वारा :- एजोटोबैक्टर, बेजेरिंकिया, क्लोस्ट्रिडियम |

 

सहजीवी जीवाणु द्वारा :- राइजोबियम, फ्रेंकिया |

 

नोट :- राइजोबियम जीवाणु लेग्युमिनेसी कुल के पौधों की जड़ों में सहजीवी रूप में रहते हुए नाइट्रोजन का स्थिरीकरण करते है जबकि क्रेंकिया जीवाणु नॉन लेग्युमिनेसी कुल के पौधों में नाइट्रोजन का स्थिरीकरण करता है |

 

 

 

अपघटन:-

जीवाणु पारिस्थिक तंत्र में अपघटक के रूप में कार्य करते हुए सड़े गले एवं मृत जैविक पदार्थों का अपघटन कर इनसे अकार्बनिक लवण (नाइट्रेट, सल्फेट, फोस्फेट) मृदा में मुक्त कर देते है जिससे मृदा का उपजाऊपन बढ़ता है |

 

डेयरी उद्योग में :- लैक्टोबैसीलस जीवाणु दूध की लैक्टोज शर्करा का किण्वन कर लैक्टिक अम्ल का निर्माण करते है |

 

 

एंटीबायोटिक दवाओं के स्त्रोत :- जीवाणु भी कवक के समान एंटीबायोटिक्स के स्त्रोत है |

 

साल्मन वैक्समान ने सर्वप्रथम स्ट्रेप्टोमाइसिन नामक एंटीबायोटिक को बैक्टीरिया से प्राप्त किया |

 

बैसीलस सबटिलिस से सबटिलिन नामक प्रतिजैविक मिलती है |

 

 

औद्योगिक क्रियाओं में :-

सिरका / विनेगर निर्माण में :- एसीटोबैक्टर एसिटाई के द्वारा शर्करा विलयन का अपघटन करने से प्राप्त |

 

 

सिरका / विनेगर – एसिटिक अम्ल का जलीय विलयन होता है |

 

 

चाय की पत्तियों में विशेष खुशबु व स्वाद उत्पन्न करने में :-

चाय की पत्तियों के प्रसंस्करण के समय माइक्रोकोकस कैंडिसेंस बैक्टीरिया चाय में विशेष खुशबु व स्वाद उत्पन्न करता है |

 

 

 

तम्बाकू उद्योग में :- बैसीलस मेगाथीरियम नामक बैक्टीरिया तम्बाकू की पत्तियों में विशेष गंध उत्पन्न करता है |

 

 

 

रेशे प्राप्त करने में (Rating):-

क्लोस्ट्रीडियम ब्यूटाइरियम – जूट

क्रोटोलेरिया जन्सिया – कपास

 

 

 

चमड़े की टैनिंग / चमडा कमाना / चमड़े की सफाई में :-  जीवाणु अपघटक होने के कारण चमड़े के जैविक घटकों का अपघटन कर इसकी सफाई करते है |

 

 

 

नोट :- स्यूडोमोनास पुटिडा एक सुपर बग बैक्टीरिया है जिसका विकास प्रो. आनन्द मोहन चक्रवर्ती ने जल की सतह पर फैले तेल को साफ करने हेतु किया |

 

 

 

पाश्चयुरिकरण :- 62.8 डिग्री सेल्सियस पर 30 मिनट या 71.7 डिग्री पर 15 सैकेंड तक दूध को गर्म करना दूध का पाश्च्युरिकरण कहलाता है |

 

 

 

 

 

जीवाणु के हानिकारक प्रभाव

 

रोगजनक के रूप में :-  जीवाणु जन्तु एवं पादपों में विभिन्न रोग उत्पन्न करते है |

 

 

भोजन विषाक्तता में :- क्लोस्ट्रीडियम बोटूलिनम से बोटूलिज्म नामक खाद्य विषाक्तता हो जाती है |

 

विनाइट्रिकरण में :- नाईट्रेट का अपघटन कर इसमें से नाइट्रोजन को मुक्त करना | जैसे :- थायोबैसीलस एवं स्यूडोमोनास |

 

 

 

पशुओं में गर्भपात :-  साल्मोनेला प्रजाति का बैक्टीरिया चारा चरने वाले पशुओं में गर्भपात का कारण होता है |

 

 

कपास के रेशों को नष्ट करने में :- स्पायरोकीट जैसे जीवाणु कपास के रेशों को नष्ट कर देते है |

 

 

जैव हथियार ( बायो वेपन) के रूप में :- बैसीलस एन्थ्रैसिस नामक जीवाणु जो कि एन्थ्रैक्स रोग उत्पन्न करता है |

 

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